भिगी मिट्टी की खुशबूसे,
खिल उठता है घर आंगन।
खिल खिलाती फसलोंसे,
प्रफुल्लित हो जाए हर मन।
किसान बहाता था अपना पसीना,
इसकी किसीको कोई कदर ना।
कर्जे का बोझ उठाता था वो,
कायदा कानुन से अंजान था वो।
अपने स्वार्थ के लिये मत भडकाओ उसे,
झुठी कहानी के मत सुनाओ किस्से।
किसान को उसका हक मिला है,
सारे बंधनोसे स्वतंत्र हुआ है।
अब जागा है हिंदुस्तान,
किसान वापस मिला अभिमान।
अब तो मुक्त उनको जीने दो,
उनके पक्ष मे कायदा है, यह समझादो।
अर्चना दीक्षित