बुधवार, १० मे, २०२३

रूपं अनेक

 महीला एक पर उसके रूप अनेक 

करती है दिलसे हर काम नेक


कभी बेटी तो कभी बहु 

कभी मां तो कभी सास 

अपेक्षा होती है उससे खास 


महीला एक पर उसके रूप अनेक 

करती है दिलसे हर काम नेक


कभी घर मे तो कभी दफ्तर मे 

कभी गृहिणी तो कभी कामकाजी 

बडोंके सम्मान मे है राजी 


महीला एक पर उसके रूप अनेक 

करती है दिलसे हर काम नेक 


थकना उसको पता नही 

थमना उसको पसंद नही 

बाखुबी निभाए हर काम वही 


आदर सम्मान हो नारी शक्ती का 

नतमस्तक हो उसके आगे हर मानव का


अर्चना दीक्षित 


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