मेरे घर के सामने एक छोटासा आंगन,
जहा हर दिन पुकारे मेरा मन।
थोडी जमीन तु साफ भी कर दे,
उसमे थोडी आज मिट्टी भी डाल दे।
अब कुछ पौधे लगाकर तो देखो,
आंगन को बगीचा बनते तो देखो।
थोडा खाद उनको भी दे दो,
और पानी भी उन्हे हर दिन दे दो।
मेरे आंगन कि आज मैने सुन ली,
जिससे बगीचे की हर कली खिली।
तितलीयोंका आना - जाना रहेगा,
पंछीयोंके चहकनेसे आंगन खिल उठेगा।
चलो ये हम संकल्प करते है,
और जागतिक पर्यावरण दिन मनाते है।
अर्चना दीक्षित
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